Tuesday, July 11, 2017

बसीरहाट की हिंसा ने टॉकी से पर्यटकों को किया दूर







कोलकाता, 11 जुलाई
उत्तर चौबीस परगना जिले के बसीरहाट शहर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के कारण इच्छामति नदी के किनारे बसे पर्यटकों के प्रिय स्थल टॉकी से लोग दूर ही रह रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि वे जल्द ही वहां नहीं आने वाले हैं।
गौरतलब है कि टॉकी पर्यटन स्थल कोलकाता से महज 70 किलोमीटर की दूरी पर है। लेकिन वहां जाने वालों को बसीरहाट होते हुए जाना पड़ता है। इच्छामति नदी के किनारे बसे छोटे से शहर टॉकी के पास ही बांग्लादेश की सीमा है। भीषण गर्मी के दिनों को छोड़ कर साल भर टॉकी में पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है।
नदी के किनारे बसे पर्टटन स्थल पर हालांकि हिंसा की छाया नहीं पड़ी, इसका श्रेय दोनों संप्रदाय के स्थानीय लोगों, होटलों के मालिकों और दूसरे लोगों को दिया जा सकता है। जिनके कारण लोग सुरक्षित वहां से निकलने में कामयाब रहे। यहां एक प्रसिद्ध भोजनालय के मालिक विमल चंद्र दे का कहना है कि सामान्य कार्य दिवस में  प्रतिदिन 60-70 ग्राहकों को भोजन खिलाता हूं। कई बार यह संख्या बढ़ कर 100 और छुट््टी के दिनों में 150 तक पहुंच जाती है। लेकिन बीते सारे हफ्ते के दौरान यह संख्या शून्य से लेकर ज्यादा से ज्यादा पांच ग्राहकों की संख्या पार नहीं कर सकी। अगर कुछ महीनों तक यही हालत जारी रही, तब मुझे अपनी दूकान बंद करनी होगी।
इसी तरह, दूसरे  एक गेस्ट हाउस के मालिक तापस चटर्जी का कहना है कि आठ और नौ जुलाई को हमारे सारे कमरे बुक हो चुके थे, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया। यहां अब हालात पूरी तरह से सामान्य हो चुके हैं, लेकिन अभी तक एक भी कमरे की बुकिंग नहीं हुई है। मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि अगर यही स्थिति जारी रहेगी, तब कैसे काम धंधा चलेगा।
टॉकी घाट के नाव वालों की हालत भी दूसरे लोगों से कुछ कम नहीं है। यहां से लोग बांग्लादेश सीमा के नजदीक मचरंगा द्वीप देखने के लिए जाते हैं। यहां के नाविक शुकूर आलम का कहना है कि बादुरिया और आसपास के इलाकों में उपद्रव शुरू होने के बाद 2 जुलाई से ही उनकी आमदनी शून्य हो गई है क्योेंकि कोई पर्यटक इधर आ ही नहीं रहा है।
आलम का कहना है कि बसीरहाट शहर सात जुलाई से सामान्य है। इसके बाद भी पर्यटक टॉकी की ओर रूख नहीं कर रहे हैं। आठ जुलाई को मुझे कोई भी ग्राहक नहीं मिला, जबकि नौ जुलाई को एक परिवार यहां आया था।
गौरतलब है कि यह छोटा सा गांव विजय दशमी के दिन दुर्गापूजा के विसर्जन के लिए प्रसिद्ध है। जब भारत और बांग्लादेश के लोग मूर्तियां विसर्जित करनेके लिए  यहां आते हैं। इस मौके पर दोनों समुदाय के लोग मिठाइयों से एक दूसरे का मुंह मीठा करवाते हैं। नदी के दोनों किनारों पर दोनों देशों के हजारों लोग यह दृश्य देखने और अपने मोबाइल कैमरे में बंद करने के लिए घंटों खड़े रहते हैं।
मौजूदा हालात को देखते हुए यहां कारोबार करने वालों को दुर्गापूजा के मौके पर होेने वाले पर्यटकों की भीड़ को लेकर भी आशंका देखी जा रही है। हालांकि अभी पूजा में दो महीने से भी ज्यादा का समय बाकी है। इसके बाद भी होटल, भोजनालय, नाविक पर्यटकों के इलाके से दूर रहने के कारण चिंतित हैं। 

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