Friday, July 7, 2017

एक ओर दंगों का माहौल, दूसरी ओर अभी भी गलबहियां डालते हैं हिंदू-मुसलमान

एक ओर दंगों का माहौल, दूसरी ओर अभी भी गलबहियां डालते हैं हिंदू-मुसलमान 
रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, 6 जुलाई  
उत्तर चौबीस परगना जिले के बादुरिया के इस गांव में अजान होने के बाद कीर्तन होता है। कीर्तन करने वालों की टोली जहां हिंदुओं के घर जाती है, वहीं मुसलमानों की चौखट पर भी जाती है। मस्जिद के सामने भी हरि कीर्तन के बोल गुंज उठते हैं। इस गांव में दुर्गापूजा होती है। पूजा का माइक मस्जिद के सामने बांधा जाता है। पुष्पांजलि के मंत्र मंस्जिद के करीब से चारों ओर गुंजते हैं। गांव में सदियों से हिंदू-मुसलमान रहते हैं। मुसलमान के गरियारे में हिंदुओं की गाय बंधती है। लोगों को पता ही नहीं चलता कि कौन हिंदू है और कौन मुसलमान है। इलाके के लोगों ने कभी यह समझने की कोशिश भी नहीं की कि कौन किस धर्म को मानने वाला है। लेकिन अचानक जैसे स्वर बदल गए हों। 
गांव का नाम मांगुरखाली है। गांव के शौभिक सरकार (18) के फेसबुक पोस्ट के कारण उत्तर चौबीस परगना जिले के बादुरिया, देगंगा, बसीरहाट, स्वरुपनगर समेत आसपासके इलाकों में तनाव फैल गया। हालांकि यह गांव अभी शांत है। युवक के घर कुछ लोगों ने आग लगा दी थी, लेकिन मिलन मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष अमिरुल इस्लाम ने आग पर पानी डाल दिया। गोबरडांगा से दमकल की गाड़ी लेकर मखसूद पहुंचे थे। इससे लगता है कि सारे उन्माद ग्रस्त नहीं हैं। अगर ऐसा होता तो हिंदू के घर की आग बुझाने मुसलमान क्यों परेशान होते? 
अमिरुल भतीजे शबीन रहमान को लेकर हाबरा गए थे, शाम साढ़े छह बजे मोबाइल पर उनके गांव के अध्यापक त्रिदिव चौधरी ने कहा कि अमिरूल चाचा, शौभिक के घर हमला हो रहा है। आग लगाने की कोशिश की जा रही है। तुम जल्द से जल्द यहां पहुंचो। करीब घंटा भर बाद जव वे गांव लौटे, 300 लोगों का एक दल बबलू सरकार के घर हमला करने में लगा था। बबलू शौभिक के पिता का बड़ा भाई है। मां की मौत के बाद ग्यारहवीं का छात्र उनके घर ही रहता है। लकड़ियां जला कर खिड़की से भीतर डाली जा रही थी। पागल भीड़ के सामने हिंदू-मुसलमान कोई नहीं था। 
उस दिन के बारे में बताते हुए कांपती जुबां में अमिरुल बताते हैं कि  कि सैकड़ों अनजान युवक हमला कर रहे थे, विरोध करने पर उल्टे उन्होंने पूछा कि आप कौन होते हैं? मैने बताया कि मैं कौन हूं, लेकिन उन्होंने कोई परवाह नहीं की औरअपना काम करते रहे। बबलू का मकान जल रहा था। वे दौड़ कर मित्रों को बुला कर लाए। गांव को युवक मखसूद दमकल कर्मचारी है। वह गोबरडांगा से दमकल की गाड़ी लेकर पहुंचा। हिंदू-मुसलमानों ने मिलकर आग बुझाई। 
गांव में रहने वाले करीब दो हजार लोगों को अब भी भरोसा नहीं हो रहा है कि बाहर से आकर लोगों ने एक घर में आग लगा दी। सांप्रदायिक तनाव तो दूर की बात है, मतदान के समय भी गांव के दो बूथों पर कभी मारपीट नहीं हुई। इसलिए दूसरे इलाकों में हिंसा होने के बाद भी यह इलाका शांत ही है। 
मस्जिद की दूसरी ओर शौभिक का घर है। पास में ही मनोरंजन मंडल रहते हैं। वृद्ध मंडल के मुताबिक ईद में सभी लोगों को आमंत्रित किया गया था, सारे लोग गए थे। शौभिक की एक गलती के लिए हमें लज्जित होना पड़ रहा है। उनकी ही तरह श्यामछेल मंडल काकहना है कि वे हमारे मास्टर मोशाए हैं, हम सारे उनके छात्र हैं। इस गांव के सभी लोग पारिवारिक समारोह में एक दूसरे के घर जाते हैं। 
युवा मोहम्मद रियाजुल सरदार ने बताया कि मंगलवार को गांव में पुलिस आई थी। इसके बाद पुलिस नहीं आई क्योंकि हमारे गांव में कोई विवाद नहीं है। बबलू के साथ सिराजुल मंडल एक ही स्कूल में पढ़ते थे। उनका कहना है कि मेरे बचपन के मित्र हैं और शरीफ इंसान हैं। 
गौरी मंडल भी हैरान-परेशान हैं, गांव में पहले कभी हंगामा नहीं देखा था। उनका कहना है कि मसजिद में अजान के बाद हम कीर्तन करते हैं। कभी किसी ने कुछ नहीं कहा। गांव के लोगों का कहान है कि यहां सदियों से सांप्रदायिक सौहार्द कायम है और रहेगा, लेकिन बाहरी लोग कैसे इलाके में घुसे इसे लेकर लोग चिंतित हैं। 
इसी तरह, बादुरिया के मलयपुर में बीते 30 सालों से आसपास रहने वाले सुमेन सेन और अब्दुल बारिक मंडल का कहना है कि किसी भी स्थानीय व्यक्ति को हिंसा करते हुए नहीं देखा गया। हंगामे के दौरान हमलोग जान बचाने के लिए घर से भाग गए,ऐसा नहीं करते तो कोई नहीं बचता। 

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