Saturday, June 2, 2018

ममता,लालू,केजरीवाल, अखिलेश, मायावती,तेजस्वी मोदी से बेहतर हैं

देश प्रेमी भारतीय नागरिकों से अपील   पर प्रतिक्रियाओं का जवाब 
ममता,लालू,केजरीवाल, अखिलेश, मायावती,तेजस्वी मोदी से बेहतर हैं
फेसबुक, ट्विटर, गुगल प्लस, वाट्सएप, ब्लाग,लिंकदिन  समेत विभिन्न सोशल मीडिया पर अपील का व्यापक असर हुअा और करीब एक लाख लोगों ने पढ़ा। इतना ही नहीं हजार के करीब लोगों ने प्रतिक्रिया भी प्रकट की। 'मोदी बनाम विपक्ष' विषय पर ज्यादातर मोदी समर्थक चमचे,दलाल,गद्दार (जिसे भगत कहा जाता है) नहीं थे बल्कि 'भ्रम' का शिकार हुए देश प्रेमी नागरिक ही थे। इससे लगता है कि वास्तव में मोदी के चमचों की संख्या 'एक फीसद' भी नहीं है। 
'भ्रम' के बारे में बंगाल के लोगों को मालूम है क्योंकि जादूगर पीसी सरकार तीन घंटे के मायाजाल में एक एेसी दुनिया की रचना करते थे कि लोग सब कुछ भूल जाते थे। दरअसल इसे वह 'काल्पनिक जगत' कह सकते हैं जिसमें लोगों को भरपूर मनोरंजन मिले लेकिन हासिल कुछ नहीं हो। सरकार का मोदी से भ्रम तब टूटा जब भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ जीत की चाह में शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा। मोदी का जादू या उनका खुद का मायाजाल उन्हें जीत नहीं दिला सका। अजय देवगन अभीनित  दृष्यम  फिल्म देखने वालों को यह बाते अासानी से समझ में अा जाएंगी। 
मोदी समर्थकों के पास अंतिम समय में अब एक ही सवाल बचा है कि क्या मोदी से विपक्ष के नेता बेहतर हैं तो इसका सीधा सा जवाब है कि हां, सौ फीसद बेहतर ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, मायावती, लालू प्रसाद यादव, चंद्रबाबू नायडू, मुलायम सिंह यादव, शरद पवार, शरद यादव कहीं बेहतर हैं। तेजस्वी ने लगातार तीसरी जीत हासिल करके बता दिया है कि वह भी मोदी से बेहतर नेता है।  जरुर चौंक जाएंगे लेकिन सच्चाई यही है। विपक्ष के नेता 'जननेता' और मोदी महज एक 'ब्रांड' है। 
मायावती ने 165 किलोमीटर के 'ताज एक्सप्रेस' और अखिलेश यादव ने 302 किलोमीटर 'लखनऊ एक्सप्रेस वे' का उद्घाटन किया तो यूपी के लोगों को भी पता नहीं चला और मोदी ने 9 किलोमीटर की एक सड़क का उद्घाटन किया तो खुली जीप पर एेसा प्रदर्शन किया देश-दुनिया में लगा कि मोदी ने वास्तव में कमाल कर दिया है। यह 'भ्रम जाल' मीडीया की बदौलत बनाया गया है, जो लोगों के सामने औंधे मूंह गिर रहा है। नीम की दातून से अच्छी कोलगेट, कोलगेट के अच्छा पतंजलि पेस्ट महज कुछ लाख खर्च करके कंपनियों ने लोगों के दिमाग में घुसा दिया है। तब महज चार साल में चार हजार करोड़ रुपए विज्ञापन, ब्रांड में खर्च करके बनाया गया भ्रमजाल क्या बड़ी बात है। 
अगर 'ममता-मोदी' का मुकाबला किया जाए तो मोदी को 'शून्य' भी नहीं मिलेंगे। बीस साल तक जड़ और गंदगी के बारे में बदनाम राज्य की जड़ता तोड़ कर सफाई के मामले मेंं दूसरे राज्यों के मुकाबले खड़ा करना ममता की बहुत बड़ी उपलब्धि है। 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' के विज्ञापन पर हजारों करोड़ खर्च किए गए लेकिन परियोजना में महज सौ करोड़ रुपए भी प्रति राज्य के लिए नहीं रखे गए। जबकि दूसरी ओर ममता की 'कन्याश्री' परियोजना में 2000 करोड़ की राशि खर्च करके  40 लाख बेटियोें को बचाया, पढ़ाया गया,युनेस्को, देश-विदेश के साथ ही केंद्र सरकार ने भी प्रशंसा की, लेकिन देश के लोगों कोे पता ही नहीं चला। सात साल के शासन के दौरान 'माओवाद-नक्लवाद' को जड़ से समाप्त करने का ममता ने बेमिशाल कारनामा किया, केंद्र ने बंगाल के माओवादी प्रभावित जिलों को 'रेड कारीडोर' से बाहर करने के साथ ही अातंकवाद प्रभावित  जिलों में दी जाने वाली अार्थिक मदद मई महीने से बंद कर दी है। ममता का यह काम मोदी के चार हजार करोड़ के विज्ञापन से ज्यादा बड़ा है, लेकिन कहीं प्रचारित नहीं हुआ। भाजपा दार्जिलिंग में गोरखा आतंकियों को भड़का कर 10 साल से लोकसभा सीट जीतती रही है, ममता ने वहां भी हालात बदल कर दिखा दिए। अब वहां अातंकी और भाजपाई हवा हैं। 
बंगाल में 2007-2008 से भाजपा पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। दावा किया जा रहा है कि नंबर दो पर है। 294 विधानसभा सीटों में 3, 42 लोकसभा सीटों में अलगाववादी गोरखा मोरचा की मदद से मिलकर दो सीटें, पंचायत में तृणमूल की 300 के मुकाबले कहीं तीन और कहीं तेरह के साथ भ्रम पैदा किया जा रहा है कि पता नहीं क्या कमाल कर दिया। 
वजह सिर्फ एक है कि बंगाल की 'शेरनी' से 'दीदी' और अब 'जननेत्री' बनी ममता बनर्जी ने 'मां-माटी-मानुष' की सरकार के माध्यम तक नागरिक सेवाओं को जनजन तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त की है। राज्य के नौ-दस करोड़ लोगों में शायद ही कोई एेसा घर हो जहां उनकी ममतामय पहुंच नहीं हो। स्कूल में दाखिला,किताबें, जूते, बैग, दोपहर का भोजन से लेकर सारी शिक्षा व्यवस्था फ्री, 40 लाख छात्र-छात्राओं को साइकिल वितरित करके स्कूल जाने की परिवहन समस्या का समाधान, स्कूल-क्लब को लाखों की मदद करके भवन और शिक्षा के साथ खेलकूद में बंगाल को अागे लेकर जाने, बंगाल में प्याज की खेती से लेकर फुटबाल का निर्माण करने से लेकर हर तबके के लोगों को सरकारी सुविधाएं प्रदान की हैं। 
ब्रांड और जननेताओं में फर्क यह होता है कि ब्रांड का विज्ञापन बंद होते ही लोग नए ब्रांड की ओर चले जाते हैं। रामदेव किताबें छापते थे, सलवार-सूट पहन कर भागने के बाद सारा प्रकाशन बंद हो गया। लोगों को याद भी नहीं कि कुछ छापते थे। 
लालू प्रसाद यादव गरीबों के 'मसीहा' हैं। उन्होंने बिहार के गरीब और पिछड़े लोगों को अार्थिक-सामाजिक तौर पर इस मुकाम तक पहुंचाया है कि भाजपा के अभी तक वहां पसीने छूट रहे हैं। काशीराम-मायावती ने अपने समाज के लोगों के लिए जितान किया है कि हजारों करोड़ खर्च करने के बाद भी साहब 'दहशत' में हैं। मुलायम सिंह यादव ने समाज के  लिए जो किया, अखिलेश ने उसे' हाईटेक' तरीके से अागे बढ़ाया और उत्तर प्रदेश को सफल राज्यों की कतार में शामिल करवाया। अरविंद केजरीवाल बगैर पुलिस-प्रशासन, लगभग क्षमताहीन होकर भी स्कूल, अस्पताल , बिजली पानी से लेकर आम लोगों के लिए कितना काम कर रहे हैं इसकी 'मिसाल' मिलना मुश्किल है। नायडू ने अपने राज्य में जो किया है, उस बारे में इलाके के लोगों को मालूम है। 
बंगाल का रिकार्ड रहा है कि पंचायत चुनाव में जीतने वाला दल अगले पांच साल तक लोकसभा,विधानसभा पर अासानी से जीत जाता है। भाजपा की ओर से रामनवमी से लेकर हनुमान जयंती तक दंगा-फसाद, चुनाव को लेकर व्यापक हंगामा किया गया, लेकिन ममता ने अपना रिकार्ड बरकरार रखा कि सत्ता में अाने के बाद पंचायत और उपचुनाव में मुख्यमंत्री प्रचार नहीं करेंगी। अगर वे प्रधानमंत्री बन गई तब हो सकता है कि बंगाल में होने वाले चुनाव में भी प्रचार बंद कर दें। यह लोगों में 'भरोसे' और अपने काम कोे लेकर है, जिसने उन्हें जननेत्री बनाया है। 
दूसरी ओर, गुजरात का मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बन गया उसे तो अासानी से जीत जाना चाहिए थे, लेकिन लाव-लश्कर के बाद भी मुश्किल से जीत मिली। विपक्ष की दहशत इतनी कि यूपी के एक उपचुनाव की पराजय से डरकर चुनाव प्रचार बंद होने के बाद इलाके से कुछ दूरी पर रोड शो करने पहुंच गए। इसके बाद भी भाजपा उम्मीदवार बुरी तरह से पिट गया। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री की सीट पर हार के बाद यूपी में किसी मुसलमान को सांसद बनने से रोकने में नाकाम रहना मोदी के गाल पर जबरदस्त तमाचा है, जिसे जाटों, ब्राहम्णों, हिंदुओं ने मिल कर जड़ा है। 
यह फर्क है ब्रांड और जननेताओं में । 
विज्ञापन के बल पर ब्रांड को लोगों तक पहुंचाने के लिए झूठी बातें की जाती हैं,इस बारे में समझदार लोगों को तो मालूम है। नामसझ होग झांसे में फंस कर बेवकूफ बन जाते हैं। मोदी 'मूरख' नहीं है लेकिन 'यू टर्न' के मामले में मोहम्मद  बिन तुगलक को हार मनाने वाले पहले अाधार का विरोध करते थे, पाकिस्तान-चीन, एफडीअाई, जीेएसटी का विरोध करते थे। अब उनका 'गुणगान' कर रहे हैं। कर्नाटक चुनाव में 1957 में जनरल बने अधिकारी का 1948 में नेहरू से अपमान करने की बात हो या 1938 की जिन्ना की तस्वीर का 2018 में हल्ला करने साफ है कि 'ब्रांड' का लोगों पर असर नहीं रहा। 
मोदी नेता 'नहीं' ब्रांड हैं और' झूठ' बोल कर लोगों को 'भ्रमित' किया जा रहा है। हर रैली में 70 साल कांग्रेस ने क्या किया कहने वाले को यह मालूम नहीं कि इसमें 16 साल तो उनकी सरकार थी। यह मानने लायक नहीं है। देश में 1947-1952 तक सरकार में श्यामाप्रसाद, अंबेडकर शाामिल थे। कांग्रेस का पहला मंत्रिमंडल 1952 में बना और 1957-1964 में नेहरू प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद भाजपा के प्रिय शास्त्री जी रहे। 1977 से 1979 तक जनता पार्टी की सरकार , 1989 में वीपी सिंह की सरकार, 1998 में वाजपेयी की सरकार, 2014 में मोदी की सरकार के दौरान चंद्रशेखर, गुजराल प्रधानमंत्री रहे। क्या गुजरात के मुख्यमत्री को देश के बारे में मालूम नहीं कि 16 साल श्यामाप्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण अाडवाणी, शास्त्री, मोदी सरकार में रहे। 
ग्रामीण बिजली परियोजना 2005 से शुरू हुई थी और 31 अक्तूबर 2013 तक सरकारी अांकड़ों के मुतािबक 93.99 फीसद घरों में बिजली पहुंच चुकी थी। इससे मोदी के घर-घर बिजली पहुंचाने के दावे की पोल खुल जाती है। टैक्स देने वाले 2016-17 में 6.41 करोड़ लोग थे, इसमें 6.08 करोड़ व्यक्तिगत कर दाता था। कहां वे करदाताओं की संख्या बढ़ा सके।
एक भ्रम यह फैलाया जाता है कि मोदी के आने के बाद विरोधी दल नेता मंदिरों में जाने लगे, हिंदु धर्म को महत्व देने लगे, जो कि सरासर झूठ है। मोदी के बारे में लोगों को गुजरात नरसंहार के बाद पता चला कि इस नाम का  भी कोई नेता है. लेकिन ममता उनके पहले प्रसिद्ध हो चुकी थी। अगर ममता की बात की जाए, बचपन से उनके घर में मां काली की पूजा होती है, वे अपने मां के साथ सपरिवार खुद पूजा करती हैं। बीते 30 सालों से तो मीडिया में रहते हम लोगों ने भी देखा है कि काली पूजा के साथ ही सबसे ज्यादा दुर्गापूजा पंडालों में जाना, उद्घाटन के लिए अामंत्रित किए जाने वालों में सबसे पहले ममता ही रहती हैं। सरकार में अाने के बाद गंगा सागर के लिए बीते साल 70 करोड़ रुपए खर्च करने हों या छठ पूजा की छुट्टी उनके कार्यकाल में ही शुरू हुई है। मुख्यमंत्री बनने से पहले ही वे गुरूपर्ब के मौके पर गुरूद्वारों में जाती रही हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद बड़ा दिन समारोह को एक इवेंट बना दिया वहीं चार दिन की दुगार्पूजा को 10 दिन का त्योहार बनाने के साथ ही दुर्गापूजा विसर्जन का कार्निवल के अाइडिए से विश्व में बंगाल को नई पहचान प्रदान की है। 
विज्ञापन ने ब्रांड के तौर पर बताया कि देश को 'गुजरात माडल' बनाया जाएगा, अब लोगों को पता चल रहा है कि 
गुजरात माडल के तहत स्कूल के बच्चों को साइकिल में 'पंचर' लगाना सिखाया जाएगा। मोदी 'पकौड़े' बेचने की सलाह दे रहे हैं। इससे साफ है कि विपक्ष के नेता मोदी से 'बेहतर' हैं। 
घोटालों की अगर बात की जाए, तब 71 साल में जितने घोटाले हुए होंगे,सारे मिलाकर कर भी नोटबंदी, राफेल डील से कम ही होंगे। इसके अलावा नीरव, ललित, सुशील मोदी के हजारों करोड़ डकार कर भागने,अमित शाह की संपति में 300 गुणा वृद्धि , उनके बेटे की संपति में भारी वृद्धि, भाजपा कार्यालय में करोड़ों रुपए खर्च समेत चुनाव प्रचार में खर्च की गई राशि घोटालों के अलावा कहां से अाई है।बैंक डिफाल्टरों को लाखों करोड़ का कर्ज माफ क्या घोटाला नहीं है। बैंक वालों की ओर से डिफाल्टरों के खिलाफ कार्रवाई पर सरकार की खामोशी क्या बतलाती है। 
एक बात और लोगों के दिमाग में ठूंसी जा रही है कि 70 साल कांग्रेस ने क्या किया, तब आप लोगों ने विरोध क्यों नहीं किया। अारटीअाइ ने बताया है कि मोदी ने चार साल में विज्ञापन पर 4000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। लेकिन सरकार के अलावा भाजपा, उनके समर्थकों की ओर से मोदी को ब्रांड बनाने के लिए कितने अरब करोड़ रुपए खर्च किए गए, इसका कहीं हिसाब नहीं मिल सकता। 
कोबरा पोस्ट के 'स्ट्रींग अापरेशन' ने मीडिया की पोल खोल दी है कि कैसे पैसे ले लेकर क्या कुछ छापा, दिखाया जाता है। कांग्रेस की गलतियों का देश के लोगों ने सबक सिखाया मोदी को तो मालूम नहीं क्योंकि बेचारे गुजतार में पड़े रहते थे। लेकिन बंगलादेश बनाने के बाद इंदिरा गांधी को 'मां दुर्गा' बताने वाले अटल बिहारी बाजपेयी की इसी देवी को लोगों ने इमरजंसी के खिलाफ 1977 में धराशायी कर दिया था। इंदिरा की मौत के बाद प्रचंड बहुमत से सत्ता में अाने वाले राजीव गांधी को भी हमने 5 साल बाद उनकी 'औकात' बता दी थी। 
अाधार कार्ड के बहाने लोगों को परेशान करने, तेल की कीमतों में वृद्दि, लोगों की परवाह नहीं करने के कारण ममता, सीपीऐम न यूपीए सरकार से नाता तोड़ा था। इसलिए 10 साल बाद देश की जनता ने मनमोहन सिंह को 'सबक' सिखाते हुए 'ब्रांड' को सत्ता सौंप दी। 
इसलिए 70 सालों में 16 से ज्यादा साल भाजपा और दूसरे दलों ने राज किया। लोग 'खामोश' नहीं थे, इमरजंसी के दौरान भी नहीं और अब पहले से ज्यादा इमरजंसी है तब भी खामोश नहीं है।  बसु बाजपेयी की भाजपा को 'असभ्य, बर्बर' कहते थे, लेकिन मोदी ने उसे दंगाई और देशद्रोही भी बना दिया। इसलिए बंगाल में ममता, दिल्ली में केजरीवाल, बिहार में तेजस्वी, यूपी में अखिलेश-मायावती, पंजाब में अमरेंद्र सिंह का विरोध करने का मतलब मोदी का समर्थन करना ही होगा। 
कांग्रेस का भी कोई विकल्प नहीं था, मोदी को मनमोहन के मुकाबले खास तौर पर महंगाई कम करने, लोगों के बैंक खातों में 15 लाख रुपए देने और जन समर्खक काम करने के लिए चुना गया था। लेकिन चार साल में 300 फीसद डीजल पर टैक्स बढ़ाकर, मोदी जमाने में ही किरासन की कीमत में 69 फीसद वृद्धि करने का नतीजा है कि देश भर में किसान, छात्र, बैंक कर्मचारी से लेकर हर अादमी त्रस्त है। हाल में 11 राज्यों की 15 सीटों पर करीब एक करोड़ लोगों ने मतदान करके बता दिया है कि भ्रम की दीवार टूट चुकी है और बंगला में कहते हैं उनीसे -फिनिश। 
देश के सामने सवाल यह है कि एक ब्रांड का समर्थन करना है, जिसकी कोई औकात नहीं है, जिसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है, जिसके अपने विचार नहीं हैं, जिनका कोई जनाधार नहीं है। जो सिर्फ वह कहता है जो उससे कहलवाया जाता है। इसके अाधार पर एक तानाशाह का चेहरा अख्तियार करके जनता को कुचला जा रहा है। दूसरी ओर, जननेता हैं जो देश, समाज, लोगों के लिए काम कर रहे हैं। 
सवाल यह है कि 'असभ्य, बर्बर, दंगाई, देशद्रोही पार्टी' को चुनना है या हमारे अपने लोगों को चुनना है, जो हमारे लिए काम करते है। पूर्ण बहुमत वाली सरकार अच्छी या मिली जुली, तो लोगों ने मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत वाली सरकार को अल्पमत में होते देख लिया है। हिटलर की तानाशाह सरकार  से अच्छी जनता की सरकार होती है, इसमें शक नहीं है। हाल के उपचुनाव में लोगों ने बता दिया कि 2019 में भले ही कोई हो लेकिन मोदी प्रधानमंत्री नहीं होंगे। 
जयहिंद, जय भारत। 
रंजीत लुधियानवी 
3 जून 2018